Surdas Ka Jivan Parichay – सूरदास का जीवन परिचय
Surdas (सूरदास)
Surdas Ka Jivan Parichay – सूरदास का जीवन परिचय – सूरदास एक ऐसे व्यक्ति थे जिन्होंने भक्ति आंदोलन तथा हिंदी के कई साहित्य में अपना नाम बनाया। सूरदास अपनी कविताएं ब्रजभाषा में लिखते थे जिसे श्री कृष्ण की भाषा भी कहा जाता है। सूरदास जी को श्री कृष्ण का सबसे बड़ा भक्त भी कहा जाता है।
उनकी कविताएं तथा ग्रंथ काफी प्रचलित है और सब के द्वारा पसंद किए जाते है। उन्हें अलंकार का देवता भी कहा जाता है। ऐसा कहा जाता था कि उन्हें अलंकारों का काफी ज्ञान था। उनके ग्रंथों में अलंकारों का बहुत ही खूबसूरत प्रयोग दिखाया जाता है।
सूरदास का जन्म (Surdas Ka Jivan Parichay – सूरदास का जीवन परिचय)

सूरदास की जिंदगी से जुड़े काफी विवाद हमें देखने को मिलती हैं। सबसे पहला विवाद तो उनके जन्म को लेकर ही उठता है। कुछ लोगों का मानना है कि सूरदास का जन्म 1478 को हुआ तो कुछ कहते हैं की उनका जन्म 1483 को हुआ। आंकड़ों के हिसाब से ऐसा कहा जा सकता है कि सूरदास जी का जन्म शताब्दी के आखिर में ही हुआ था।
सूरदास जी का जन्म एक गरीब ब्राह्मण परिवार में हुआ था। इनके पिता का नाम रामदास सारस्वत (Ramdas Sarswat) था तथा उनकी माता का नाम जमुना राजीव (Jamuna Rajeev)। सूरदास जी के पिता रामदास जी गायक थे।
Surdas Ka Jivan Parichay – आपको सूरदास के जन्म के स्थान से जुड़े भी काफी विवाद सुनने को मिलेंगे। जैसे कि कुछ लोगों का मानना है कि उनका जन्म उत्तर प्रदेश में हुआ था लेकिन कुछ कहते हैं कि सूरदास जी का जन्म दिल्ली के सीही गांव में हुआ था।
परिवार की खराब स्थितियों के कारण सूरदास को अपना घर छोड़कर यमुना तट पर जाना पड़ा था आगे का जीवन व्यतीत करने। यहां पर ही सुरदास जी को अपने गुरु वल्लभाचार्य मिले।
वल्लभाचार्य जी ने सूरदास के कविताओं को आकार दिया तथा उन्होंने भगवत कथा भी सुनाई। वल्लभाचार्य को अपना गुरु बनाने के बाद ही संत सूरदास ने हिंदी साहित्य के अंदर अनोखी रचनाएं की।
सूरसागर, सूर सारावली तथा साहित्य लहरी को सूरदास की सबसे बड़ी रचनाएं बताया जाता है। सूरदास अपनी ज्यादातर कविताएं ब्रजभाषा में लिखा करते थे।
ऐसा कहा जाता है कि सूरदास जन्म से ही दृष्टिहीन थे और यह भी बोला जाता है कि उनके पास श्री कृष्ण के द्वारा दी गई दिव्य दृष्टि थी। इस दिव्य दृष्टि का प्रयोग कर के वह श्री कृष्ण तथा राधा को देख सकते थे। सूरदास की सगुण भक्ति
ऐसा कहा जाता है कि सूरदास ने सगुण भक्ति को अपनाया था। सूरदास मूर्ति पूजन जैसी चीजों में भी विश्वास रखते थे जो कि सगुण भक्ति के अंतर्गत ही आती है।
सूरदास जी को सबसे बड़ा कृष्ण का भक्त बताया गया है। दृष्टिहीन होने के बावजूद भी सुरदास कृष्ण तथा उनकी लीलाओं का ऐसा वर्णन करते थे जैसे मानो उनके सामने ही सब हो रहा हो। यही कारण था कि काफी लोग उन्हें दृष्टिहीन नहीं मानते हैं।
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सूरदास का जीवन परिचय – सूरदास पर श्री कृष्ण का वरदान

ऐसा कहा जाता है कि एक बार सूरदास जी एक गड्ढे में गिर गए और अंधे होने की वजह से वह 7 दिन तक उसी गड्ढे में पड़े रहे। सूरदास जी उस कष्ट में भी लगातार श्री कृष्ण का नाम ले रहे थे।
सूरदास जी की भक्ति से प्रसन्न होकर श्री कृष्ण ने उन्हें दर्शन दी लेकिन अंधे होने की वजह से सूरदास जी श्री कृष्ण को अपनी आंखों से देखने में असफल थे। इसी दुख में उन्होंने श्री कृष्ण से वरदान मांगा कि वह अपनी दिव्य दृष्टि सदैव उन पर बनाए रखें।
श्री कृष्ण सूरदास जी को उनके नेत्र वापस देना चाहते थे लेकिन सूरदास जी को यह दर था कि अगर उन्हें उनकी दृष्टि फिर से मिल जाएगी तो कहीं उनका मन श्री कृष्ण से भटक न जाए। यही वजह है कि कभी भी सूरदास ने श्री कृष्ण या किसी भी अन्य भगवान से अपनी दृष्टि लौटाने का वरदान नहीं मांगा।
सूरदास का जीवन परिचय – संत सूरदास के जैसा सच्चा भक्त अब हमें कहीं देखने को नहीं मिलेगा। अपने मन कि दृष्टि से वह सब देख पाते थे। ऐसा कहा जाता है कि वह मंदिर में जाकर गाते थे तथा हमेशा पंडित को बताया करते थे कि श्री कृष्ण को कैसी पोशाक पहनानी है। उन्हे सबसे अच्छे से पता होता था कि श्री कृष्ण को कौन सा रंग भाता है तथा कौन नही। मंदिर के पंडितों को यह सब देखकर झटका सा लग जाता था लेकिन सूरदास तो अपनी ही मस्ती में रहते थे।
सूरदास की काव्यगत विशेषताएँ

- सूरदास के अनुसार भगवान श्रीकृष्ण के अनुग्रह से मनुष्य को सद्गति मिल सकती है। अटल भक्ति कर्मभेद, जातिभेद, ज्ञान, योग से श्रेष्ठ है।
- सूरदास ने वात्सल्य, श्रृंगार और शांत रसों को मुख्य रूप से अपनाया है। सूर ने अपनी कल्पना और प्रतिभा के सहारे कृष्ण के बाल्य-रूप का अति सुंदर, सरस, सजीव और मनोवैज्ञानिक वर्णन किया है। बालकों की चपलता, स्पर्धा, अभिलाषा, आकांक्षा का वर्णन करने में विश्व व्यापी बाल-स्वरूप का चित्रण किया है। बाल-कृष्ण की एक-एक चेष्टा के चित्रण में कवि ने कमाल की होशियारी एवं सूक्ष्म निरीक्षण का परिचय दिया है़- ( मैया कबहिं बढैगी चौटी? किती बार मोहिं दूध पियत भई, यह अजहूँ है छोटी। – सूर के कृष्ण प्रेम और माधुर्य प्रतिमूर्ति है। जिसकी अभिव्यक्ति बड़ी ही स्वाभाविक और सजीव रूप में हुई है। )
- जो कोमलकांत पदावली, भावानुकूल शब्द-चयन, सार्थक अलंकार-योजना, धारावाही प्रवाह, संगीतात्मकता एवं सजीवता सूर की भाषा में है, उसे देखकर तो यही कहना पड़ता है कि सूर ने ही सर्व प्रथम ब्रजभाषा को साहित्यिक रूप दिया है।
- सूरदास ने भक्ति के साथ श्रृंगार को जोड़कर उसके संयोग-वियोग पक्षों का जैसा वर्णन किया है, वैसा अन्यत्र दुर्लभ है।
- सूरदास ने विनय के पद भी रचे हैं, जिसमें उनकी दास्य-भावना कहीं-कहीं तुलसीदास से आगे बढ़ जाती है – ( हमारे प्रभु औगुन चित न धरौ।समदरसी है मान तुम्हारौ, सोई पार करौ। )
- सूरदास ने स्थान-स्थान पर कूट पद भी लिखे हैं।
- प्रेम के स्वच्छ और मार्जित रूप का चित्रण भारतीय साहित्य में किसी और कवि ने नहीं किया है यह सूरदास की अपनी विशेषता है। वियोग के समय राधिका का जो चित्र सूरदास ने चित्रित किया है, वह इस प्रेम के योग्य है
- सूरदास ने यशोदा आदि के शील, गुण आदि का सुंदर चित्रण किया है।
- सूरदास का भ्रमरगीत वियोग-शृंगार का ही उत्कृष्ट ग्रंथ नहीं है, उसमें सगुण और निर्गुण का भी विवेचन हुआ है। इसमें विशेषकर उद्धव-गोपी संवादों में हास्य-व्यंग्य के अच्छे छींटें भी मिलते हैं।
- सूरदास काव्य में प्रकृति-सौंदर्य का सूक्ष्म और सजीव वर्णन मिलता है।
- सूरदास की कविता में पुराने आख्यानों और कथनों का उल्लेख बहुत स्थानों में मिलता है।
- सूरदास के गेय पदों में ह्रृदयस्थ भावों की बड़ी सुंदर व्यजना हुई है। उनके कृष्ण-लीला संबंधी पदों में सूर के भक्त और कवि ह्रृदय की सुंदर झाँकी मिलती है।
- सूरदास का काव्य भाव-पक्ष की दृष्टि से ही महान नहीं है, कला-पक्ष की दृष्टि से भी वह उतना ही महत्वपूर्ण है। सूर की भाषा सरल, स्वाभाविक तथा वाग्वैदिग्धपूर्ण है। अलंकार-योजना की दृष्टि से भी उनका कला-पक्ष सबल है।
Surdas Ka Jivan Parichay – सूरदास की रचनाएं
सूरदास के द्वारा लिखे गए पाँच ग्रन्थ है जिसकी हमे जानकारी है।

- सूरसागर – यह सबसे प्रसिद्ध रचना मानी जाती है सूरदास के द्वारा। सूरसागर के अंदर आपको सवा लाख पद मिलेंगे। इस ग्रंथ को सूरदास ने ब्रजभाषा में लिखा था। इस ग्रंथ की सबसे प्राचीन प्रतिलिपि सरस्वती भंडार में पाई जाती है।
- सूरसारावली – सूरसारावली को भी सूरदास की रचना ही बताया जाता है। इसमें 1104 छन्द पाए जाते है। इस ग्रंथ में होली के त्योहार तथा उसकी ख़ुशियों के बारे में बात किया गया है।
- साहित्य लहरी – यह रचना भी सूरदास की ही है। इस रचना में आपको 118 पद मिलेंगे। कहा जाता है कि इस महान ग्रंथ के अंतिम पदों में सूरदास का असली नाम और उनकी वंशवृक्ष दी गई है। साहित्य लहरी के अनुसार सूरदास का नाम सूरजदास है तथा वे चन्दबरदायी के वंशज हैं।
- नल दमयन्ती – नल और दमयंती की कथा महाभारत के अंतर्गत आती है। यह कथा सूरदास के द्वारा लिखी गई थी। इस ग्रंथ में सूरदास ने श्री कृष्ण से अलग हटकर महाभारत के काल पर प्रकाश डाली है।
- ब्याहलो – सूरदास की इस रचना में भी 118 पद लिखे गए हैं। यह ग्रंथ भी काफी मशहूर हुई थी लेकिन आज के इतिहास में हमें इसका कोई भी प्रमाण नहीं मिलता है।
संत सूरदासजी के नाम से यह पद या कविता वायरल हो रही है
सूरदासजी के नाम से ये कविता और भविष्यवाणी बहुत वायरल हो रहे हे। हालांकि इस भविष्यवाणी की सत्यता की पुष्टि करना मुश्किल है। साथ ही यह भी कहना मुश्किल है कि सुरदासजी ने कब और किस संदर्भ में लिखे थे। फिर बी हम आपके जानकारी के लिए इस कविता को यह शेयर किये हे।
रे मन धीरज क्यों न धरे,
सम्वत दो हजार के ऊपर ऐसा जोग परे।
पूरब पश्चिम उत्तर दक्षिण,
चहु दिशा काल फ़िरे।
अकाल मृत्यु जग माही व्यापै,
प्रजा बहुत मरे।
सवर्ण फूल वन पृथ्वी फुले,
धर्म की बैल बढ़े।
सहस्र वर्ष लग सतयुग व्यापै,
सुख की दया फिरे।
काल जाल से वही बचे,
जो गुरु ध्यान धरे,
सूरदास यह हरि की लीला,
टारे नाहि टरै।।
रे मन धीरज क्यों न धरे
एक सहस्र, नौ सौ के ऊपर
ऐसो योग परे।
शुक्ल पक्ष जय नाम संवत्सर
छट सोमवार परे।
हलधर पूत पवार घर उपजे, देहरी क्षेत्र धरे।
मलेच्छ राज्य की सगरी सेना, आप ही आप मरे।
सूर सबहि अनहौनी होई है, जग में अकाल परे।
हिन्दू, मुगल तुरक सब नाशै, कीट पंतंग जरे।
मेघनाद रावण का बेटा, सो पुनि जन्म धरे।
पूरब पश्चिम उत्तर दक्खिन, चहु दिशि राज करे।
संवत 2 हजार के उपर छप्पन वर्ष चढ़े।
पूरब पश्चिम उत्तर दक्खिन, चहु दिशि काल फिरे।
अकाल मृत्यु जग माहीं ब्यापै, परजा बहुत मरे।
दुष्ट दुष्ट को ऐसा काटे, जैसे कीट जरे।
माघ मास संवत्सर व्यापे, सावन ग्रहण परे।
उड़ि विमान अंबर में जावे, गृह गृह युद्ध करे
मारुत विष में फैंके जग, माहि परजा बहुत मरे।
द्वादश कोस शिखा को जाकी, कंठ सू तेज धरे।
सौ पे शुन्न शुन्न भीतर, आगे योग परे।
सहस्र वर्ष लों सतयुग बीते, धर्म की बेल चढ़े।
स्वर्ण फूल पृथ्वी पर फूले पुनि जग दशा फिरे।
सूरदास होनी सो होई, काहे को सोच करे।
भविष्यवाणी का सार : भविष्वाणी का सार यह है कि विक्रम संवत 1900 के बाद ऐसा समय आएगा कि चारों ओर मारकाट मचेगी। उस वक्त जय नामक संवत्सर होगा। हिन्दू, तुर्क, मुगल सभी कीट-पतंगों की तरह मरेंगे। अकाल और सूखा होगा। मलेच्छ राज्य की सभी सेना अपने आप ही मारी जाएगी। रावण का बेटा मेघनाद पुन: जन्म लेगा और तब भयंकर समय होगा।
सूरदासजी कह रहे हैं कि हे मन तू धैर्य क्यों नहीं रख रहा, संवत 2000 में ऐसा भयंकर समय आएगा जिसमें जिसमे चारों दिशाओं में काल का तांडव होगा, हर जगह अकाल मृत्यु यानी बेमौत मारे जाएंगे। इस भयंकर समय में प्रजा बहुत मरेगी। पृथ्वी पर युद्ध जैसी तबाही होगी जिसमें बड़ी संख्या में लोग मरेंगे। उसके बाद एक किसान के घर एक महात्मा पैदा होगा जो शांति और भाई चारा स्थापित करेगा। एक धर्मात्मा इस विनाशकारी समय को वश में करेगा और लोगों को धर्मज्ञान की शिक्षा देगा।
इस भविष्यवाणी में जिस महान आध्यात्मिक नेता की बात की जा रही है कुछ लोग उसे अपने अपने गुरु से जोड़कर देखते हैं। कुछ लोग मानते हैं कि यह भविष्यवाणी संत रामपाल और कुछ लोग इसे बाबा जयगुरुदेव से जोड़कर देखते हैं।
उल्लेखनीय है कि उपरोक्त छंदों में जिन संवतों का उल्लेख किया गया है वह काल व्यतीत हो चुका है। जैसे संवत् 2000 के ऊपर ऐसा जोग परे जिसका अर्थ है कि अंग्रेजी सन के अनुसार 1942 के बाद ऐसा होगा। दूसरे छंद में एक सहस्र, नौ सौ के ऊपर ऐसो योग परे।
शुक्ल पक्ष जय नाम संवत्सर छट सोमवार परे। अर्थात संवत 1900 अर्थात अंग्रेजी सन् 1842 में यह स्थिति थी। तीसरा छंद में कहा गया है कि संवत 2 हजार के ऊपर छप्पन वर्ष चढ़े अर्थात अंग्रेजी सन्न 1998 में यह घटना घट चुकी है।
1842 के बाद भारत में अंग्रेजों के खिलाफ असंतोष पनना और 1857 में क्रांति हुई जो असफल हो गई। फिर 1942 में स्वतंत्रता आंदोलन चला और दुनियाभर में मारकाट मची थी। महात्मा गांधी और सुभाषचंद्र बोस के नेतृत्व में भारत को आजादी मिली लेकिन विभाजन और दंगे का दर्द भी सहा। 1998 के बाद भारत में पविवर्तन की लहर तेजी से फैल रही है। इस बीच कौन है वो मसीहा जो भारत को21वीं सदी में विश्व गुरु बनाएगा?
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इस लेख में हमने कोशिश की है कि संक्षिप्त में आपको Surdas Ka Jivan Parichay – सूरदास का जीवन परिचय दें ताकि आप भी ऐसे महान कवि को जान सकें। आज के इतिहास के पृष्ठ में हमें सूरदास की किताबें तथा उनके ग्रंथ बहुत कम देखने को मिलते हैं जो की बड़ी ही ताजुब की बात है। यही वजह है कि आज हमने सूरदास तथा उनके जीवन के बारे में आपको बताना चाहा। हमे आशा है आपको इस महान संत के जीवन का परिचय पसंद आया हो।
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